भारत के पंतप्रधान और चायना के पंतप्रधान जब
मिलते हैं....
विश्व के दो बलाढ्य
देश, और
उन देशोंके सबसे ताकतवर नेता जब मिलते है और किसी फिल्म का जिक्र होता है तो हमे
बहोत ध्यान से हमारी कलाकृती को देखना होगा. क्योंकी अब "दंगल" एक फिल्म
नहीं रहती, वो एक सांस्कृतिक दर्पण बन जाता है.
भारत एक प्राचीन महान संस्कृति का देश है जहाँ पर
महाकाव्य,
नाटक ('सिनेमा' यह कुछ
हद तक नाटकोंकी अभिव्यक्ति का तंत्रग्यानिक रुप है) के द्वारा समाज प्रबोधन किया
जाता है. चीन (या अब इंग्लिश मिडियम वालोंके अनुसार,"चायना"..
जैसे अब भगवान 'राम' कि जगह पर 'रामा', 'लक्ष्मण' कि जगह पर 'लक्ष्मणा'..)चायना भी भारत जितना ही प्राचीन
संस्कृती का महान देश है. भारत देश कि 'सिंधू' संस्कृति और चायना कि 'मंगोलिअन' संस्कृति इनमे एक विशेष समानता है. वो है, बौध्द
धर्म! भगवान बुध्द भारत माता के सपूत है. और चायना के नब्बे प्रतिशत लोग भगवान
बुध्द के अनुयायी है.
दोनो देश ब्रिटिशोंके गुलाम थे, दोनो देश अपने अपने सुवर्ण युग मे बहोत समृध्द थे. दोनो देशोंमे राजाओंका
शासन था. शायद दोनो संस्कृतियोंका मिलन जल्द ही हो जाता था लेकिन पहले एवं दूसरे
विश्व युध्द के बाद चायना को कम्युनिस्ट विचारधारा और भारत को पूंजीवादि
विचारधाराओने प्रभावित किया. जिसके कारण भगवान बुध्द को माननेवाला यह देश भारत के
साथ दुश्मनी का व्यवहार रखता गया. जिसका फिलोसोफिकल बेस पाकिस्तान से बेहतर है. लेकिन
भारतिय शासकोंको हमेशा से चीन से ज्यादा पाकिस्तान के साथ दोस्ती रखने मे ज्यादा
दिलचस्पी रही. शायद यह इसी के लिये था क्योंकि पाकिस्तानी लोग हमारे जैसे ही दिखते
है, और चीन के लोग मंगोलियन वंश के कारण हमे वो 'अपने' जैसे नही लगे.
शायद भाषा, यह एक बहोत बडा फेक्टर
चीन और भारत के बीच दीवार बनके खडा है. किसी प्रकार का कोई मेल दोनो देशोंके
भाषाओंमे नहीं है. इसीलिये बोर्डर पर पाकिस्तान जितना ज्यादा तनाव ना होने के
बावजूद भी चीन या भारत कि तरफ से कोई दोस्ती का प्रस्ताव नही रखा गया. क्रिकेट और
फिल्मे ये दो चीजें भारत पाक के बीच समान है. और चीन क्रिकेट नहीं खेलता. ना चीनी
लोग अंग्रेजी समझते है. इसके अलावा 'ब्रुसली', 'जेकी चेन' कि फिल्मे भारत मे क्लासिकल ऑल टाईम हिट
है. लेकिन अब तक भारतिय फिल्मोंको चीन की अवाम ने नहीं जाना था. वो उन्हे जानने के
लिये मिला फिल्म "दंगल" के रूप मे.
'दंगल' कि विषयवस्तु, उसमे झलकनेवाली चायनीज और इंडियन समानतायें इसकी चर्चा तो हम करेंगेही..
लेकिन पहले 'आमिर खान' की दूसरी फिल्म 'तारे जमीन पर' का भी हम जिक्र करना चाहेंगे. 'तारे जमीन पर' कि थीम लाईन थी, कि बच्चोंको जैसा चाहिये वैसा माहोल दे दीजिये. जबकी 'दंगल' कि थीम लाईन है, बच्चोंको
कुछ अक्ल नही है, और बाप जैसा चाहता है वैसा ही बच्चोंने
करना चाहिये.. तो फिर क्या ये दोनो कहाँनियाँ विरोधाभासी है? और फिर चायना कि पब्लिक को 'दंगल' क्यो पसंद आयी..? 'तारे जमीन पर' के पिता अपने बच्चोंसे चमत्कार की अपेक्षा करते है, लेकिन
बच्चे की प्रगति के लिये खुद कुछ नही करते. इससे विपरित 'दंगल'
का पिता समाज के, सिस्टम के विरुध्द जाकर अपने
आप की आहुति देते हुये बच्चियोंका करियर डेवलप करता है. जितनी कन्विनसिंग कथा है,
उतनी ही कन्विनसिंग 'आमिर खान' एवं सबकी एक्टिंग है. 'आमिर' अपने
आप मे एक जबरदस्त मिसाल है, कि एक मेन स्ट्रीम एक्टर किस हद
तक अपने आप को भूमिका के लिये तैय्यार करता है.
हरियाणा जैसे स्टेट में लडकियोंका पैदा होने पर जो
नजरिया होता है, ठीक वैसा ही नजरिया उत्तर चाईना कि अवाम का है.
भारत में पहाडो कि तरफ जिस प्रकार कि पारिवारिक रचना है उसी प्रकार कि पारिवारिक
रचना उत्तर चाईना के पहाडियोमें है. इसीलिये चाईना के लोगोने इस कथा को अपने नजदीक
पाया. जब चाईना का बर्थ रेट दुनिया मे सबसे ज्यादा था तब बहोत प्रयासोंसे उन्होने
पिछले तीस सालोंसे एक परिवार एक बच्चा यह निती अपनाई. जिसका दुष्परिणाम यह हुआ,
कि बच्चे एककल्ली, हठी, अकेले
हो गये. भाई-बहन, चाचा-मामा सिर्फ किताबों में रह गये. 'एक' बच्चे के जुनून में हर एक चाईनीज माँ सिर्फ
लडकाही चाहती थी... पैसे के पीछे भागते भागते माता पिता का बच्चोंके प्रति का
समर्पण जैसे चीजे भूल गये थे.
इसकी पूर्तता की शायद 'दंगल' ने. 'दंगल' एक सच्ची घटना पर आधारित होने के कारण कथा मे जान आ गयी. जो एक युनिवर्सल
ट्रुथ बन गयी. ऐसा कहते है कि, 'जितना आप 'पर्सनल' हो जाते हो उतनाही वो 'युनिवर्सल' हो जाता है.' खास
करके जब कहानी हर एक किरदार की मानसिकता को सटिक ढंग से पकडती है. तब हर किसी को
वो किरदार अपने आजूबाजू मे मिलने लगते है.
दूसरा ऐसा, कि पिछले कुछ
सालोंसे चायनिज फिल्मोमे चोर पुलिस और बदले की घिसीपिटी कहानियाँ इसके अलावा किसी
प्रकार का नयापन नहीं था. हॉलिवूड मे भी अब ना जेम्स बॉन्ड कि फिल्मे बन रही है,
ना कोई नया सुपर स्टार है. जो दमखम 'अरनोल्ड
श्वार्तनैगर' मे था जो रुबाब 'स्टेलोन'
मे था उस प्रकार का कोई सुपर स्टार नही रहा. होलीवूड भी कहानी के
तलाश मे भटक रहा है. इसलिये 'दंगल'का
नयापन सबको अच्छा लगा. 'बाहुबली' भी
चली लेकिन वो लोगोंके दिमाग को संतुष्ट करनेवाली फिल्म है. जहाँतक 'दंगल' का सवाल है, ये दिल को
छुनेवाली फिल्म है. इसमे एक जबरदस्त सामाजिक मेसेज है. इसमे एक परिवार कि कहानी
है. इसमे जीरो से हीरो बनने वाले इंसानोंकी सच्ची कहानी है. 'बाहुबली' एक फिक्शन है, तो 'दंगल' एक फेक्ट!
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