एक अनुभव...
कुछ दिन पहले मेरे
पास हरिद्वार से कुछ लोग "अप्सरा हठात योग" "नागकन्या लोक"
सीखने के लिये आये थे. अप्सरा हठात योग मैने बहोतोंको सिखाया था, लेकिन "नागकन्या " पहली बार किसी को सिखा रहा था. सुबह आठ बजे मैंने उनको
मेरे घर पे ही सिखाने का निश्चित किया था. किस प्रकार का माहोल होगा इसकी जानकारी
मुझे स्वयम नहीं थी. इसमे सिर्फ मंत्र जाप होता है, कुछ तांत्रिक विधी नही
होती. हरिद्वार के देव भूमी के लोग वहां से सूरत गुजरात मे गूढ विद्या सीखनेके
लिये आना ये अपने आप मे बहोत बडी बात थी. सबसे अच्छा मुझे लगा, कि
अपने हाथोंसे उन्होने गंगोत्री के पास वाले बागानोंसे ताजे रसीले सेब तोडकर लाये
थे, और विशेश प्रकार कि घर की शुद्ध घी मे बनी हुयी ऋशिकेष टाईप
मिठाईयाँ.
अब तक पिछले पच्चीस साल मे हजारो लोगोंको अनेको
अनेक अद्भुत से अद्भुत चीजे सिखाई लेकिन गुरुओंको मिलनेके लिये कैसे जाते है, वो
कोई देवभूमी के पहाड के लोगोंसे सीखे. जिससे,
ना सिर्फ गुरू, बल्की
गुरू माँ, गुरु पुत्र एवम सम्पूर्ण परिवार संतोष हो कर हृदय
पूर्वक आशिर्वाद दे... क्योंकि वो लोग बहोत संत, मुनीयोंको हिमालय कि
गुफाओन्मे मिल चुके थे और ग्यान हासिल किया हुआ था. उन्हे यह मालुम था, कि
गुरुओंसे मिलने के लिये जाते है,
तो क्या क्या लेकर जाते है..
अत्यंत संतोषपूर्वक हमने उन्हे सिखाने का काम शुरू
किया. और करीबन चालिस मिनिट के बाद वो लोग डीप ट्रांस मे चले गये यानी शून्य हो
गये. *(इसके आगे का विवरण जो मेरे विद्यार्थी है, उन्ही को समझ मे आयेगा..)*
अब उन्हे सूक्षम देह अवस्था प्राप्त हो गयी थी. उनकी आत्मा शरीर से मै निकाल चुका
था. अब मेरी बारी थी... एक विशेष ध्यान कि प्रक्रिया से मै भी शून्य हो गया.. एक दिव्य
प्रकाश मेरे सामने आया. उस दिव्य प्रकाश ने मुझे निर्देश दिया, फिर
मेरे साथ उनकी आत्माओंको भी मै लेकर चल रहा था. ऊपर से निचे मुडकर मैंने देखा मेरा
शरीर विशेष मुद्रा मे बैठा
हुआ है. शिष्योंका शरीर पडा हुआ है. बंद कमरे मे लेकिन
हल्का नीला रंग दमक रहा था. मै देख रहा था मेरे पिछे मेरा
घर संसार कैसे चल रहा
है. सब कुछ पीछे छोडकर अशरीरी अवस्था मे "अस्ट्रो ट्रेवलिंग" के लिये हम
लोग निकले थे. क्या ये हिप्नोटिक नींद थी?
नहीं.
हम तो जाग रहे थे. ब्रम्हांड कि सैर के लिये निकले
हुये हम लोग.. सामने दिव्य शक्ति.. मन एकदम पोजिटिव वायब्रेशन से भरा हुआ. ना कोई
दुख ना कोई सुख है, एक आजादी को हम महसूस कर रहे थे. शायद शरीर से हम
आजाद हो गये थे. बहोत दूर दूर अत्यंत जलद गति से लहराते हुये जा रहे थे और वो
हमारी प्रकाशमान लाईट एक तंग सुरंग मे घुस गयी. हम भी उनके पीछे सुरंग से जाने
लगे.. विचित्र आवाजे आने लगी भयंकर कोलाहल,
मानो जैसे कोई किसी के प्राण ले
रहा हो. कुछ विचित्र बास भी हमसूस हुयी. पता नही कितने समय से अत्यंत जलद गती से
हम पार हो रहे थे. लगा
जैसे हम पृथ्वी को पीछे छोडकर किसी दूसरीही जगह पर आ गये
थे. शायद इसे स्वर्ग कहते होंगे.
एक विशाल अंतहीन सरोवर था. जिसके सामने हमारी
आत्माओको रुकने का निर्देश दिया गया. और वो दिव्य शक्ति धीरे
धीरे पानी मे अदृष्य
हो गयी. थोडी देर मे पानी से लहरे उठी और मनुष्य के जैसा पानी आकार लेने लगा एक
महा प्रचंड ऋषी का आकार हमारे सामने प्रकट हुआ. हमारी आत्माओने उन्हे साक्षात
प्रणाम किया. उन्होने हमे हमारी इच्छा पूछी,
हमने उन्हे "नाग लोक"
के दर्शन एवम 'नागकन्या'
के दर्शन कि अभिलाषा बतायी.
मुनिवर मंद मंद मुस्कुराये. उनका कद धीरे धीरे कम होने लगा और शरीर रूप मे दिखने
लगे, शायद वो भृगू ऋषी थे. हमारे सामने वो चलने लगे, उन्होने
हमे निर्देश दिया हम भी उनके पीछे पीछे चलने लगे. सरोवर की महीम रेत मे हम फस रहे
थे. हमारी सांसे मानो अटक
रही थी. हमारा अ-शरीरी शरीर अब रेत मे धस रहा था. बिना
डरे मुनीवर को हम फॉलो कर रहे थे. जमीन मे धसते
धसते हम जमीन के नीचे अपने आप चले
गये. अंदर का नजारा बहोत अद्भुत था.
ये यकिनन पृथ्वी ग्रह नहीं था. सब जगह पर अति सुंदर
स्त्री एवम पुरुष थे, जिनका नीचे का शरीर काले रंग के साप के जैसा था.
कुछ इनके विपरीत सम्पूर्ण नाग थे. कुछ नाग बहोत बूढे कुछ बेहद फुर्तिले कुछ सुनहरे
रंग के भी थे. एक
जगह पर मुनि रुके अब वो और भी ज्यादा अंदर जमीन मे धसने लगे.
हमारा अ-शरीर शरीर भी अंदर धसने लगा.. हम
एक विशाल जगह पर आ गये थे. लग रहा था कि
यह नाग कन्याओंका देश है. मुनी ने आवाज दिलायी. जमीन से कुछ
बेहद सुंदर युवतिया
उपर आयी जिनका श्रिंगार देखने लायक था. लम्बे खूबसूरत बाल. चेहरे आनंद से भरे हुये
खिलखिलाते हुये होठोंकी मुस्कुराहट,
आंखे मदहोश करनेवाली शीतल, नाजुक
नाक और तेजस्वी गौर वर्ण. विशेष प्रकार की चोलियाँ पहनी हुयी इन कन्याओंका असल रूप
धीरे धीरे उपर आने लगा. कमर के नीचे का हिस्सा सम्पूर्ण्त: नाग के शरीर जैसा.
हमे"नाग कन्याओंके" अद्भुत दर्शन हुये.
कोई किसी से बात नही कर रहा था. हम तो बस सहमे हुये से उनके दर्शन के
अभिलाषी. कुछ
समय के पश्चात वो नाग कन्याये अपने अपने काम के लिये निकल गयी. मुनी ने इशारा किया
हम
उनके शरीर मे घुस गये मानो जैसे माँ के गर्भ मे सुरक्षित. थोडी देर मे एहसास गहरा
गहरा होता गया. सबकुछ एकदम
रुक गया. सिर्फ घोर अंधेरा. फिर एहसास हुआ हमारी सांसे
चल रही है. हम मुद्रा मे बैठे हुये है. अपनी क्लास में. अब हम शरीर मे वापस आये
थे. करीब करीब शाम के साढेचार बज गये थे. बहोत भूख लग रही थी.. शिष्योंने मुझे
पूछा, 'सर, ये जो हमने अनुभूति ली वो क्या है? क्या
ये सच है की आभासात्मक कोई दुनिया'... मैंने जवाब दिया, " यह तो
मै भी नही जानता. लेकिन आप लोग वर्णन करो कि आपको किस प्रकार कि अनुभुती
हुयी.." उन्होने बताना शुरु किया.."शायद हमने भृगु ऋषी को देखा... हम
जमीन मे धसते चले जा रहे थे....
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